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विकास को प्रभावित करने वाले कारक एमपी वर्ग 3

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https://educationdstudynotes143.blogspot.com/2020/07/blog-post.html विकास के विभिन्न आयाम शारीरिक विकास - इस विकास में बालक के शरीर के बाएं एवं आंतरिक अवयवों का विकास शामिल है शरीर के बाएं परिवर्तन जैसे ऊंचाई शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं आंतरिक अवयवों के परिवर्तन रूप से दिखाई तो नहीं पड़ते हैं किंतु शरीर के भीतर उनका समुचित विकास होता रहता हैशारीरिक वृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया व्यक्तित्व के उचित समायोजन और विकास के मार्ग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है प्रारंभ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फल स्वरुप वह अपने आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम होता जाता हैशारीरिक वृद्धि एवं विकास पर बालक के अनुवांशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है इसके अतिरिक्त वाला के परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी शारीरिक वृद्धि एवं विकास पर प्रभाव पड़ता है मानसिक विकास -मानसिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि और विकास से हैं जिसके परिणाम स्वरुप वह अपने निरंतर बदलते हुए वातावरण में ठीक प...

मानव विकास की अवस्थाएं

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http://educationdstudynotes143.blogspot.com/2020/07/3.html शैशवावस्था- जन्म से 6 वर्ष तक की अवस्था को शिशु अवस्था कहा जाता हैइसमें जन्म से 3 वर्ष तक बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है शेशवाअवस्था में अनुकरण एवं दोहराने की तीव्र प्रवृत्ति बच्चों में पाई जाती है इसी काल में बच्चों का सामाजिकरण भी प्रारंभ हो जाता है इस काल में जिज्ञासा की तीव्र प्रवृत्ति बच्चों में पाई जाती है मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से यह काल भाषा सीखने की सर्वोत्तम अवस्था है इन्हीं सब कारणों से यहां काल शिक्षा की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण  माना जाता है बाल्यावस्था -6 वर्ष से 12 वर्ष तक की अवस्था को बाल्यावस्था कहा जाता है बाल्यावस्था के प्रथम चरण छह से 9 वर्ष में बालों को की लंबाई एवं भार दोनों बढ़ते हैं इस काल में बच्चों में चिंतन एवं तर्क शक्तियों का विकास हो जाता है इस काल के बाद से बच्चे पढ़ाई में रुचि लेने लगते हैं शेष अवस्था में बच्चे जहां बहुत तीव्र गति से सीखते हैं वहीं बाल्यावस्था में सीखने की गति मंद हो जाती है किंतु उनके सीखने का क्षेत्र शेष अवस्था की तुलना में विस्तृत हो जाता है मनोव...

बाल विकास की अवधारणा वर्ग 3

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विकास की अवधारणा विकास की अवधारणा विकास की प्रक्रिया एक अविरल क्रमिक तथा सतत प्रक्रिया होती है विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक क्रियात्मक संज्ञानात्मक भाषागत संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता है विकास की प्रक्रिया में रुचि ओ आदतों दृष्टिकोण हो जीवन मूल्यों स्वभाव व्यक्तित्व व्यवहार इत्यादि का विकास भी शामिल है बाल विकास का तात्पर्य - बालक के विकास की प्रक्रिया!बालक के विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारंभ हो जाती है विकास की इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था शैशवावस्था बाल्यावस्था किशोरावस्था प्रौढ़ावस्था इत्यादि कई अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है मानव विकास की अवस्थाएं मानव विकास एक सतत प्रक्रिया है शारीरिक विकास तो एक सीमा के बाद रुक जाता है किंतु मनो शारीरिक क्रियाओं में विकास निरंतर होता रहता है इन मनो शारीरिक क्रियाओं के अंतर्गत मानसिक भाषाएं संवेगात्मक सामाजिक एवं चारित्रिक विकास आते हैं इनका विकास विभिन्न आयु स्तर में भिन्न भिन्न प्रकार से होता है इन आयु स्तरो को मानव विकास अवस्थाएं कहते हैं भारतीय मनीषियों ने मानव विकास की अवस्...