बाल विकास की अवधारणा वर्ग 3

विकास की अवधारणा
विकास की अवधारणा विकास की प्रक्रिया एक अविरल क्रमिक तथा सतत प्रक्रिया होती है विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक क्रियात्मक संज्ञानात्मक भाषागत संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास होता है विकास की प्रक्रिया में रुचि ओ आदतों दृष्टिकोण हो जीवन मूल्यों स्वभाव व्यक्तित्व व्यवहार इत्यादि का विकास भी शामिल है

बाल विकास का तात्पर्य- बालक के विकास की प्रक्रिया!बालक के विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व गर्भ में ही प्रारंभ हो जाती है विकास की इस प्रक्रिया में वह गर्भावस्था शैशवावस्था बाल्यावस्था किशोरावस्था प्रौढ़ावस्था इत्यादि कई अवस्थाओं से गुजरते हुए परिपक्वता की स्थिति प्राप्त करता है

मानव विकास की अवस्थाएं
मानव विकास एक सतत प्रक्रिया है शारीरिक विकास तो एक सीमा के बाद रुक जाता है किंतु मनो शारीरिक क्रियाओं में विकास निरंतर होता रहता है इन मनो शारीरिक क्रियाओं के अंतर्गत मानसिक भाषाएं संवेगात्मक सामाजिक एवं चारित्रिक विकास आते हैं इनका विकास विभिन्न आयु स्तर में भिन्न भिन्न प्रकार से होता है इन आयु स्तरो को मानव विकास अवस्थाएं कहते हैं



भारतीय मनीषियों ने मानव विकास की अवस्थाओं को 7 कालो में विभाजित किया है
1. गर्भावस्था -   गर्भाधान से जन्म तक
2. शैशवावस्था -  जन्म से 5 वर्ष तक
3. बाल्यावस्था-   5 वर्ष से 12 वर्ष तक
4. किशोरावस्था- 12 वर्ष से 18 वर्ष तक
5. युवावस्था-      18 वर्ष से 25 वर्ष तक
6. प्रौढ़ावस्था-.     25 वर्ष से 55 वर्ष तक
7. वृद्धावस्था-       55 वर्ष से मृत्यु तक

इस समय अधिकतर विद्वान मानव विकास का अध्ययन निम्नलिखित 4 अवस्थाओं के अंतर्गत करते हैं
1. शैशवावस्था-  जन्म से 6 वर्ष तक
2. बाल्यावस्था-   6 वर्ष से 12 वर्ष तक
3. किशोरावस्था- 12 वर्ष से 18 वर्ष तक
4.वयस्कावस्था-   18 वर्ष से मृत्यु तक

शिक्षा की दृष्टि से प्रथम तीन अवस्थाएं महत्वपूर्ण होती है इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान में इन्हें तीन अवस्थाओं में होने वाले मानव विकास का अध्ययन किया जाता है


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